नवरात्र के नौ दिन श्रद्धालुओं के लिये माता रानी के नौ रूपों के दर्शन का बेहद खास उत्सव होता है। माता रानी के इसी एक रूप का प्रसिद्ध मंदिर है महासमुंद जिले के बागबाहरा में स्थित घुंचापाली मां चंडी का मंदिर है। जंगलों और पहाड़ों के बीच स्थित माता का यह मंदिर लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। जहां नवरात्र के दिनों में प्रदेश के हर जिले ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों से भी हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर माता के दरबार में माथा टेकने पहुंचते हैं।
मां चण्डी की प्रतिमा
बागबाहरा के घुंचापाली के जंगल के बीच “मां चण्डी” पहाड़ी श्रृंखला पर भव्य मंदिर में विराजमान हैं। इस मंदिर में प्राकृतिक रूप प्रकट 23 फीट ऊंची मां चण्डी देवी की अद्भूत प्रतिमा है, जो नैसर्गिक रूप से मानव आकृतिक लिये हुए है। दक्षिणमुखी यह स्वयंभू मूर्ति दुर्लभ एवं तंत्र साधना के लिये प्रसिद्ध है। नवरात्रि के दिनों में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है। लोग अपनी मन्नत लेकर यहां दूर-दूर से माता के दरबार में मांथा टेकने पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी बताते है कि माता का यह मंदिर करीब 200 साल पुरानी है, जहां माता की मूर्ति स्वयं-भू है। बताते हैं कि, पहले आकार में मां की प्रतिमा छोटा था, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते हुए आज करीब 23 फीट ऊंचा हो गया है। पहले यह मंदिर वनांचल होने के कारण लोगों के पहुंच से दूर था। जहां ऋषि-मूनि और लोग अपनी तंत्र साधना करने आते थे। 1994 में यहां मंदिर का निर्माण हुआ तब से लेकर अब तक यहां दोनों ही नवरात्रि का पर्व महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।



मां चंडी की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है, माता के भक्तों में यूं तो साल भर जबरदस्त उत्साह देखने को मिलता है। लेकिन नवरात्र में श्रद्धालूओं का मानो सैलाब ही उमड़ता है।
मां चंड़ी की महिमा अपरंपार है, माता के दरबार में भक्त न केवल अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, बल्कि अपनी मनोकामना ज्योति कलश भी जलाते हैं। मां के दरबार में सच्चे मन से की गई प्रार्थना माता चंडी जरूर पूरी करती हैं। इस बात के कई उदाहरण आपको मंदिर में मिल जायेंगे।

जितनी अद्भूत यहां की माता की प्रतिमा है, उतना ही अद्भूत रोजाना यहां आने वाले भालूओं के एक परिवार की कहानी है, जो रोजाना माता के दरबार में आरती के समय पहुंचते हैं। कभी इनकी संख्या पांच तो कभी तीन होती थी। लेकिन अभी वर्तमान में भालुओं का एक और कुनबा उनसे मिल गया है। रोजाना अलग-अलग समय में करीब 7 भालु मंदिर पहुंच रहे हैं। जैसे ही मंदिर की घंटी बजती है भालू मंदिर में पहुंच जाते हैं। इन भालूओं को देखने श्रद्धालु पहले दूर भाग जाते थे, पर अब लोग इन भालूओं से डरने के बजाये, श्रद्धालु अपने हाथों से प्रसाद, नारियल खिलाते हैं। माता के दरबार में आने वाले भक्त भालुओं को देखकर लोग न केवल आर्श्चयचकित होते हैं बल्कि इसे चमत्कार भी मानते हैं। मंदिर में सेवा देने के साथ-साथ भालुओं की देखभाल करने वाले वन विभाग के कर्मचारी महेश चंद्राकर बताते है कि करीब 12-15 साल से ये भालु मंदिर में रोजाना आते है, लेकिन कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। भालुओं को पहचानने और उन्हें बुलाने के इन्होंने उनका नाम भी रखा गया है। नवरात्र के दिनों में यहां दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में होती है। जिसे देखते हुए बागबाहरा पुलिस, वन विभाग और स्थानीय प्रशासन की टीम के साथ मंदिर समिति के सदस्यों की निगरानी और चौकस व्यवस्था सतत होती है। भालूओं और लोगों की सुरक्षा को देखते हुए मंदिर के चारों ओर फेसिंग तार भी लगाया गया है। साथ ही नवरात्र के दिनों में दोपहर 3 बजे से लेकर रात 10 बजे तक वन विभाग के कर्मचारियों के अलावा विशेषज्ञों के साथ पुलिस कर्मचारियों की ड्यूटी मंदिर में लगाई गई है। पूरे मंदिर परिसर के साथ-साथ आने-जाने वाले रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे से नजर रखी जाती है।


बागबाहरा के घुंचापाली स्थित मां चंड़ी की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है। माता के दरबार में भक्त न केवल अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, बल्कि अपनी मनोकामना ज्योति कलश भी जलाते हैं। माता के दरबार चैत्र नवरात्रि में इस बार भक्तों ने 5 हजार 351 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित कराया। साथ ही माता के दरबार में भक्त भालुओं की इस भक्ति को मां की कृपा माना जाता है। वहीं वन्यजीव विशेषज्ञ इसके पीछे जंगलों में भालुओं के लिए खाने की कमी को मुख्य वजह मानते हैं। अब वजह चाहे जो भी हो, बागबाहरा की माता चंडी देवी मंदिर अपने प्रताप, प्रसिद्धि और इन भक्त भालुओं के चलते प्रसिद्ध है। जहां हजारों लोगो की आस्था जुड़ी हुई है।